क्या आप जानते हैं उस पारिजात का
महत्त्व और कहानी, जिसे PM मोदी ने
राम मंदिर में लगाकर बढ़ा दी शोभा
नई दिल्ली : वर्षों के लंबे इंतजार और अथक परिश्रम के बाद आखिरकार देश ही नहीं, देश के बाहर रह रहे करोड़ों हिंदुओं की भी मनोकामना आज पूर्ण हो गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर निर्माण के लिए नींव की पहली ईंट रख दी। इससे ठीक पहले प्रधानमंत्री ने राम मंदिर के प्रांगण में पारिजात का पौधा भी लगाया।
सामान्य नहीं यह पौधा
आपको बता दें कि यह पौधा कोई सामान्य पौधा नहीं है। पारिजात के बारे में मान्यता है कि पारिजात वृक्ष सिर्फ देवराज इंद्र के पास ही होता था, जो उन्होंने स्वर्ग में स्थित अपने महल के प्रांगण में लगाया हुआ था।
इस पर छोटे-छोटे सफेद फूल खिलते हैं, जो छोटे होते हैं। इस पर आने वाले फूल भी अन्य फूलों से अलग होते हैं। ये फूल रात में खिलते हैं और सुबह पेड़ से खुद ही झड़ कर नीचे गिर जाते हैं। आपको बता दें कि परिजात पौधे पर आना वाला फूल पश्चिम बंगाल का राजकीय पुष्प भी है।
देवी लक्ष्मी को प्रिय है पारिजात
इस वृक्ष को लेकर हिंदू धर्म में कई तरह की मान्यताएं हैं। इनके मुताबिक धन की देवी लक्ष्मी को पारिजात के फूल बेहद प्रिय हैं। मान्यता यह भी है कि लक्ष्मी की पूजा करने के दौरान यदि उन्हें ये फूल चढ़ाए जाएं तो वो बेहद प्रसन्न होती हैं। बता दें कि पूजा के लिए परिजात के केवल उन्हीं फूलों का इस्तेमाल किया जाता है, जो खुद ही झड़कर नीचे जमीन पर गिर गए हों। इन फूलों को पेड़ से तोड़कर पूजा में नहीं चढ़ाया जाता। इतने कीमती माने जाने वाले परिजात के पौधे को रामजन्म भूमि पूजन के दौरान इस मंदिर प्रांगण में आज लगाकर नरेंद्र मोदी ने इस अयोध्या नगरी और यहां बनने वाले श्रीराम के भव्य मंदिर की अहममियत को स्पष्ट कर दिया है।
भगवान श्री हरि का होता है श्रृंगार
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पारिजात के पौधे के फूलों से भगवान हरि का श्रृंगार भी होता है। कहा जाता है कि द्वापर युग में देवी सत्यभामा के लिए भगवान श्रीकृष्ण इस पौधे को स्वर्ग से धरती पर लाए थे। यह देव वृक्ष है, जो समुद्र मंथन से उत्पन्न हुआ था। 14 रत्नों में यह एक विशिष्ट रत्न रहा है। कहा जाता है कि इस पेड़ को छूने मात्र से इंद्रलोक की अप्सरा उर्वशी की थकान मिट जाती थी।
सत्यभामा की हठपूर्ति के लिए कृष्ण लाए पारिजात
दूसरी पौराणिक मान्यता यह है कि एक बार श्रीकृष्ण अपनी पटरानी रुक्मिणी के साथ व्रतोद्यापन समारोह में रैवतक पर्वत पर आ गए। उसी समय नारद अपने हाथ में पारिजात का पुष्प लिए हुए आए। नारद ने इस पुष्प को श्रीकृष्ण को भेंट कर दिया। श्रीकृष्ण ने इस पुष्प को रुक्मिणी को दे दिया और रुक्मिणी ने इसे अपने बालों के जूड़े में लगा लिया। इस पर नारद ने प्रशंसा करते हुए कहा कि फूल को जूड़े में लगाने पर रुक्मिणी अपनी सौतों से हजार गुना सुंदर लगने लगी हैं। पास खड़ी सत्यभामा की दासियों ने इसकी सूचना सत्यभामा को दे दी। श्रीकृष्ण जब द्वारिका में सत्यभामा के महल पहुंचे तो सत्यभामा ने पारिजात वृक्ष लाने के लिए हठ किया।
इंद्र को युद्ध में हराकर पृथ्वी पर लाए यह देववृक्ष
उस हठ को पूरा करने और सत्यभामा को प्रसन्न करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने स्वर्ग के राजा देवराज इंद्र से कुछ समय के लिए पारिजात को अपने साथ धरती पर लाने के लिए अनुमति देने को कहा। इस पर इंद्र क्रोधित हुए और बोले- पारिजात धरती लोक के लिए नहीं। न ही धरतीवासियों के लिए है। यह जवाब सुनकर श्रीकृष्ण को इंद्र पर क्रोध आया और उन्होंने वहां आक्रमण किया और पारिजात वृक्ष को पृथ्वी पर द्वारिका नगरी ले आए। इसके बाद अर्जुन ने उसी पारिजात को किन्तूर में स्थापित कर दिया।
माता कुंती के लिए अर्जुन ने लगाया था यह देववृक्ष
माना जाता है कि किन्तूर गांव का नाम पांडवों की माता कुंती के नाम पर है। जब धृतराष्ट्र ने पांडु पुत्रों को अज्ञातवास दिया तो पांडवों ने अपनी माता कुंती के साथ यहीं के वन में निवास किया था। इसी दौरान इस किन्तूर गांव में कुंतेश्वर महादेव की स्थापना हुई थी। भगवान शिव की पूजा करने के लिए माता कुंती ने स्वर्ग से पारिजात पुष्प लाए जाने की इच्छा जाहिर की। अपनी माता की इच्छानुसार अर्जुन ने स्वर्ग से इस वृक्ष को लाकर यहां स्थापित कर दिया था।
यूपी के बाराबंकी में है पारिजात का वृक्ष
हालांकि उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिला अंतर्गत किन्तूर गांव में पारिजात का एक वृक्ष पहले से ही मौजूद है। बाराबंकी जिला मुख्यालय से लगभग 38 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में स्थित है ग्राम बरौलिया। इसी गांव में प्रसिद्ध पारिजात का वृक्ष स्थित है। यह वृक्ष सरकार द्वारा संरक्षित है। भारत सरकार द्वारा संरक्षित यह वृक्ष सांस्कृतिक और पौराणिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। लोग इसका संबंध महाभारतकालीन घटनाओं से भी जोड़ते हैं।
श्रावण मास में लगता है श्रद्धालुओं का मेला
यानी कहना होगा कि किन्तूर स्थित यह पारिजात धाम पौराणिक काल से ही आस्था का केंद्र बना हुआ है। सावन माह में यहां श्रद्धालुओं का मेला लगता है। महाशिवरात्रि व्रत पर यहां कई जिलों से श्रद्धालु जल चढ़ाने पहुंचते हैं। यह औषधीय पौधा हिमालय के नीचे के तराई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। मालूम हो कि पारिजात का पेड़ 10 से 15 फीट ऊंचा होता है। हालांकि कहीं-कहीं इसकी ऊंचाई 25 से 30 फीट भी होती है। लोगों की मानें तो इस वृक्ष की आयु तकरीबन 1000 से 5000 वर्ष के बीच हो सकती है। इसके तने का परिमाप 50 फ़ीट और ऊंचाई लगभग 45 फ़ीट है। पारिजात का फूल सफेद रंग का होता है। सूखने पर इसका रंग सुनहला हो जाता है। इस वृक्ष में फूल बहुत ही कम संख्या में और कभी-कभी ही लगते हैं। खासकर गंगा दशहरा (जून माह) के अवसर पर। पारिजात के ये फूल सदैव रात्रि में ही खिलते हैं और प्रातः काल मुरझा जाते हैं। रात्रि के समय जब पारिजात के फूल खिलते हैं तो इसकी सुगंध दूर-दूर तक फैल जाती है।
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